Ganesh Chalisa गणेश चालीसा – Ganesh Chalisa Lyrics Hindi Pdf

Ganesh Chalisa गणेश चालीसा का पाठ १०८ बार करने से भगवान श्री गणेश प्रसन्न हो जाते हैं, और अपने भक्त जनो को मनोवांछित फल प्रदान करते है ! गणेश चालीसा पाठ करने से परम सुख की प्राप्ति होती है ! Ganesh Chalisa Lyrics Pdf प्रारंभ करने से पहले `ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि करु करू स्वाहा का जाप जरूर करें !

 Ganesh Chalisa सनातन धर्म के अनुसार भगवान श्री गणेश को हम सभी प्रथम पूजनीय के तौर पे जानते हैं | हम सभी अपने घर मैं किसी भी मांगलिक और शुभ कार्य करते समय पहले गजानन भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना करते हैं, जो भी व्यक्ति सच्ची श्रद्धा के साथ Ganesh Chalisa का पाठ करते है, वैसे भक्तों से प्रभु गजानन प्रसन्न हो जाते हैं,और उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है !

Ganesh Chalisa Lyrics in Hindi

|| दोहा ||

                                                              Ganesh Chalisa

जय गणपति सदगुण सदन,कविवर बदन कृपाल |
विघ्न हरण मंगल करण,जय जय गिरिजालाल ||

अर्थ : हे सद्गुणों के सदन भगवान श्री गणेश आपकी जय हो कवि आपको कृपालु बताते हैं कष्टों का हरण कर सब का कल्याण करते हो माता पार्वती के लाडले गणेश जी महाराज आपकी जय हो !

|| चौपाई ||

                                                                                              Ganesh Chalisa

जय जय जय गणपति गणराजू |
मंगल भरण करण शुभः काजू ||

अर्थ : हे देवताओं के स्वामी देवताओं के राजा हर कार्य को शुभ कल्याणकारी करने वाले भगवान श्री गणेश जी आपकी जय हो जय हो जय हो

जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥

अर्थ : घर घर सुख प्रदान करने वाले हे हाथी से भी विशालकाय शरीर वाले श्री गणेश भगवान आपकी जय हो श्री गणेश आप समस्त विश्व के विनायक यानी सृष्टि के नेता हो आप ही बुद्धि के विधाता हैं बुद्धि देने वाले हैं |

वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहाव
ना ।तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥

अर्थ : हाथी सुर समूह हुआ आपका नाक सुहावना है पवित्र है आपके मस्तक पर तिलक रूपी 3 रेखा भी मन को भा जाती है अर्थात आकर्षक है |

राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥

अर्थ : आपके छाती पर मनी मोतियों की माला है आपके सिर पर सोने का मुकुट है और आपके आंखें भी बड़ी बड़ी है |

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥

अर्थ : आपके हाथों में पुस्तक कुठार और त्रिशूल है आपको मोदक का भोग लगाया जाता है वे सुगंधित फूल चढ़ाए जाते हैं

सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥

अर्थ : पीले रंग के सुंदर वस्त्र आपके तन पर सुसज्जित हैं आपके चरण पादुका ए भी इतनी आकर्षक है कि ऋषि-मुनियों का मन भी उसे देखकर खुश हो जाता है |

धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।

गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥

अर्थ : हे भगवान शिव पुत्र वे षडानन अर्थात कार्तिकेय के भ्राता आप धन्य हैं माता पार्वती के पुत्र आपकी ख्याति समस्त जगत में फैली है |

ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥

अर्थ : रिद्धि सिद्धि आपकी सेवा में रहती है वह आपके द्वार पर आपका वाहन मूषक यानी चूहा खड़ा रहेता है

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ॥

अर्थ : हे प्रभु आप की जन्म कथा कहना वह सुनना बहुत ही शुभ वे मंगलकारी है

एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ 10 ॥

अर्थ : एक समय गिरिराज कुमारी यानी माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए भारी तप किया

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥
अर्थ : जब उनका तप वे यज्ञ संपूर्ण हो गया तब आपने ब्राह्मण के रूप में आप वहां उपस्थित हुए

अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥

अर्थ : आपको अतिथि मानकर माता पार्वती ने आपके अनेक प्रकार से सेवा की

अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥

अर्थ : जिससे प्रसन्न होकर आप अपने माता पार्वती को वर दिया

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ॥

अर्थ : आपने कहा कि हे माता अपने पुत्र प्राप्ति के लिए जो तब किया है उसके फल स्वरुप आपको बहुत ही बुद्धिमान बालक की प्राप्ति होगी और बिना गर्भधारण किए इसी समय आपको पुत्र मिलेगा

गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥

अर्थ : जो सभी देवताओं का नायक कहेलायेगा मनोविज्ञान का निर्धारण करने वाला होगा और समस्त जगत भगवान के प्रथम रूप में जिसकी पूजा करेगा

अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥

अर्थ : इतना कहकर आप अन्तर ध्यान हो गए और पालने में बालक के रूप में प्रकट हुए
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥

अर्थ : माता पार्वती के उठाते हैं आप ने रोना शुरू किया माता पार्वती आपको गौर से देखती रहे आपका मुख बहुत ही सुंदर था माता पार्वती में आपकी सूरत नहीं मिल रही थी
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥

अर्थ : सभी मगन होकर खुशियां मनाने लगे नाचने लगे देवता भी आकाश से फूलों की वर्षा करने लगे
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥

अर्थ : भगवान शंकर माता उमा दान करने लगे देवता ऋषि मुनि सब आप के दर्शन करने के लिए आने लगे
लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ॥ 20 ॥

अर्थ : आपको देखकर हर कोई बहुत आनंद होता आपको देखने के लिए शनिदेव भी आए
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ॥

अर्थ : लेकिन वह मन ही मन घबरा रहे थे दरअसल सनी को अपनी पत्नी से श्राप मिला हुआ था की जिस किसी भी बालक पर अपनी दृष्टि डालेंगे उसकी सिर धड़ से अलग होकर आसमान में उड़ जाएगा इसलिए शनिदेव बालक को देखना नहीं चाह रहे थे

गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥

अर्थ : शनि देव को इस तरह देखते हुए देखकर माता पार्वती नाराज हो गए वह शनि देव को कहा कि आप हमारे यहां बच्चे को आने से आप खुश नहीं है

कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥

अर्थ : इस पर शनि भगवान ने कहा कि मेरा मन सकुचा रहा है कि मुझे बालक को दिखा कर क्या करोगी कुछ अनिष्ट हो जाएगा

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥

अर्थ : लेकिन शनिदेव की बातों पर माता पार्वती को विश्वास नहीं हुआ माता पार्वती ने भगवान शनि को बालक को देखने को कहा

पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥

अर्थ : जैसे ही शनिदेव की नजर बालक पर पड़ी तो बालक का सिर धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया

गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥

अर्थ : माता पार्वती अपने बालक का सिर धड़ से अलग देखकर बहुत दुखी हुई वह बेहोश होकर गिर पड़ीउस समय दुख के मारे माता पार्वती की जो हालत हुई उसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता है

हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥

अर्थ : इसके बाद पूरे कैलाश पर्वत पर हाहाकार मच गया शनिदेव ने शिव पार्वती के पुत्र को देखकर नष्ट कर दिया

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥

अर्थ : उसी समय भगवान विष्णु गरुड पर सवार होकर कैलाश पर्वत पर पहुंचे वे अपने सुदर्शन चक्र से हाथी का शीश काट कर ले आएं

बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥

अर्थ : हाथी के शिशु का सिर बालक के धड़ के ऊपर रख दिया उसके बाद भगवान शंकर ने मंत्रों को पढ़कर वे प्राण डाले

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ 30 ॥

अर्थ : उसी समय भगवान शंकर ने आपका नाम गणेश रखा और वह वरदान दिया कि पूरे संसार में सबसे पहले आपकी पूजा की जाएगी और भी बाकी देवताओं ने सभी बुद्धि सहित अनेक वरदान दिए

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥

अर्थ : जब भगवान शंकर ने कार्तिकेय व आपकी बुद्धि की परीक्षा ली तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर आने को कहा

चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥

अर्थ : आदेश होते ही बिना सोचे कार्तिकेय पूरी पृथ्वी की चक्कर लगाने निकल पड़े लेकिन आपने अपनी बुद्धि से इसका उपाय सोचा

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥

अर्थ : आपने अपने माता पिता के पैर छूकर उनके ही सात चक्कर लगाए

धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥

अर्थ : इस तरह आपकी बुद्धि व श्रद्धा को देखकर भगवान शिव बहुत खुश हुए और देवताओं ने भी आसमान से फूलों की वर्षा की

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ॥

अर्थ : हे भगवान श्री गणेश आपकी बुद्धि व महिमा का गुणगान तो हजारों मुख से भी कहे तो भी कम पड़ जाएंगे

मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥

अर्थ : हे प्रभु मैं तो मूर्ख हूं पापी हूं दुखिया हूं मैं किस विधि से आपकी बिना आपकी प्रार्थना करो

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥

अर्थ : हे प्रभु आपका दास राम सुंदर आपका ही सुमिरन करता है इसकी दुनिया तो प्रयाग का ककरा गांव है जहां पर दुर्वासा जैसे ऋषि हुए हैं

अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ 38 ॥

अर्थ : हे प्रभु अब दीन दुखियों पर दया करो और अपनी शक्ति पर अपनी भक्ति देने की कृपा करें

|| दोहा ||

श्री गणेश यह चालीसा,पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै,लहे जगत सन्मान ॥

अर्थ : जो भी भक्त यह Ganesh Chalisa का सच्चे मन और ध्यान पूर्वक पाठ करते हैं, उनके घर में हर रोज सुख शांति रहती है ! उनके घर-संसार में मंगलमय माहौल बना रहता है और उसकी अपने समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है !

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो,मंगल मूर्ती गणेश ॥

अर्थ : सहस्त्र यानी हजारों संबंधों का निवास करते हुए भी ऋषि पंचमी मतलब गणेश चतुर्दशी से अगले दिन यानी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन भगवान श्री गणेश की चालीसा पूर्ण हुई

गणेश चालीसा के बारे में आप ज्यादा पढ़ने के लिए विकिपीडिया पर जा कर पढ़ सकते है !

 

इसे भी पढ़े : सम्पूर्ण हनुमान चालीसा अर्थ सहित हिंदी में

People Also ask –

Q- गणेश चालीसा पढ़ने से क्या लाभ मिलते हैं ?
Ans- जो भक्त गणेश चालीसा का पाठ रोजाना करते है उनके घर में सुख शांति बनी रहती है ! यदि आपके घर में रोज लड़ाई-झगड़े होते है तो गणेश चालीसा का पाठ आपको जरूर करना चाहिए ! आप विद्यार्थी है तो Ganesh Chalisa का पाठ करने से आपको पढ़ाई में मन लगेगा और आपका मन शांत
रहेगा !

Q – गणेश चालीसा का पाठ करने की विधि क्या है ?

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